कर्नाटक उपचुनाव में बीजेपी की हार के मायने क्या

कर्नाटक उप-चुनावों में कांग्रेस-जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) को मिली जीत जहां इस गठबंधन के लिए कई मायनों में ख़ास है, वहीं पांच सीटों में से चार सीटें जीतकर पार्टी ने बीजेपी विरोधी दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों को ये साफ़ संदेश भी दे दिया है कि एकजुट होकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को हराना संभव है.

जेडीएस के साथ गठबंधन पर कांग्रेस की एक सोची-समझी रणनीति समझ आती है. मई में विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री पद देने का वादा किया और हाथ मिलाया.

ये साझेदारी काम भी कर गई और पांच सीटों पर हुए उप-चुनावों में से सिर्फ़ एक सीट ही बीजेपी के हक़ में गई है. बीजेपी ने सिर्फ़ शिवमोगा लोकसभा सीट पर जीत हासिल की है.

लेकिन, ये चुनावी नतीजे ये भी दिखाते हैं कि जिस तरह से बीजेपी में गुटबाज़ी चल रही है, इससे बीजेपी के जमखंदी निर्वाचन क्षेत्र में जीतने की उम्मीद भी ख़त्म हो सकती है जहां लिंगायत प्रमुख और प्रभावशाली समुदाय है.

कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन ने लोकसभा की मंड्या सीट (जेडीएस) और बल्लारी (एसटी) (कांग्रेस) पर जीत हासिल की है और विधानसभा सीटों की बात करें तो रामानागरम (जेडीएस) और जमखंडी पर भी गठबंधन ने जीत दर्ज की है.

येदियुरप्पा के बेटे और बीजेपी के बीवाई राघवेंद्र अकेले ऐसे बीजेपी उम्मीदवार हैं, जिन्होंने जीत दर्ज की है. शिवमोगा सीट पर उन्होंने जेडीएस के उम्मीदवार मधु बंगरप्पा को क़रीब 52 हज़ार मतों से मात दी.

कांग्रेस भी अचरज में
लेकिन बीजेपी के गढ़ बल्लारी में कांग्रेस के प्रतिनिधि का बीजेपी के उम्मीदवार को करीब पौने तीन लाख वोटों से हराना किसी अचंभे से कम नहीं है. ख़ुद कांग्रेस भी इस जीत पर आश्चर्यचकित है.

राजनीति विशेषज्ञ और जैन यूनिवर्सिटी के प्रो-वाइस चांसलर डॉ. संदीप शास्त्री ने बीबीसी से कहा, "कर्नाटक चुनावों के नतीजे अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण संदेश लिए हुए हैं. जहां कांग्रेस ने एक क्षेत्रीय पार्टी के साथ गठबंधन किया. ये गठबंधन, राष्ट्रीय पार्टियों के लिए एक सीख है कि अगर आप साथ नहीं आए और क्षेत्रीय स्तर की पार्टियों से गठबंधन बनाकर काम नहीं किया तो, भविष्य कमज़ोर ही होगा."

आउटलुक के पूर्व संपादक कृष्णा प्रसाद कहते हैं, "कांग्रेस और जेडीएस दोनों ही पार्टियों के इस गठबंधन में तालमल की कमी थी लेकिन कर्नाटक चुनावों में बल्लारी में कांग्रेस की ये जीत निश्चित तौर पर उनके गठबंधन को मज़बूती देने का काम करेगी. बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस की जीत ये भी साबित करती है कि मोदी-शाह की जोड़ी को हराना नामुमकिन तो नहीं है. भले ही कोई केंद्रीय भूमिका में हो या न हो लेकिन अगर गणित सही बैठ गया तो उन्हें हराया जा सकता है."

डॉ शास्त्री कहते हैं, "कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन की केमिस्ट्री अब नज़र आ रही है. दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच ज़मीनी स्तर पर मतभेद हो सकते हैं लेकिन ये चुनावी नतीजे निश्चित तौर पर उनके बीच के मतभेदों को दूर करने में मदद करेंगे. साथ ही बीजेपी के भीतर की गुटबाज़ी का नतीजा भी सामने है. येदियुरप्पा के निर्वाचन क्षेत्र को छोड़ दें तो किसी ने भी जीत दर्ज नहीं की है और ये पूरी तरह गुटबाज़ी का परिणाम है.

इन चुनावी नतीजों का ही असर है जो बीजेपी सरकार में रहे पूर्व क़ानून मंत्री सुरेश कुमार ने कुछ ऐसा ट्वीट किया है. वो लिखते हैं, "अब वक़्त आ गया है कि सही तरीक़े से अंतरावलोकन किया जाए."

बीजेपी में गुटबाज़ी
हाल ही में पार्टी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने वाले और पूर्व विधायक भानु प्रकाश का कहना है कि हमें हमेशा आत्म-मंथन करते रहना चाहिए. सिर्फ़ इसी आधार पर हम राजनीति में आगे बढ़ेंगे. हमेशा ऐसा सोचना कि जो हम कर रहे हैं वही सही है और जो दूसरे कह रहे हैं वो ग़लत है, सही सोच नहीं है. राष्ट्रीय नेतृत्व को हमारे राज्य में नेतृत्व को लेकर गंभीरता से सोचने की ज़रूरत है.

प्रकाश का ये बयान बीजेपी के भीतर ही येदियुरप्पा विरोधी सोच को ज़ाहिर करता है. बीजेपी के भीतर ही कुछ लोगों की मांग है कि येदियुरप्पा को मार्गदर्शक दल में भेज दिया जाना चाहिए.

वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह इस विचार के विरूद्ध हैं और इसके पीछे संभवत: उन्हें ये डर है कि अगर येदियुरप्पा को हटा दिया गया तो लिंगायत वोट बैंक भी कट जाएगा.

लेकिन लिंगायत बहुल निर्वाचन क्षेत्र जामखंजी में कांग्रेस की जीत के पीछे तीन वजहें हैं और दोनों ही पार्टियां इसे स्वीकार करती हैं.

पहली ये कि इस इलाक़े से खड़े हुए आनंद न्यामेगउदा को लोगों की संवेदनाएं मिली. आनंद के पिता सिद्दू न्यामेगउदा को स्थानीय लोग 'छांव देने वाले' शख़्स के तौर पर देखते थे. उनकी मौत से लोगों की संवेदनाएं आनंद से जुड़ गईं.

दूसरी वजह रही अहिंदा वोट बैंक का एकीकरण. और तीसरा बीजेपी के भीतर गुटबाज़ी जिसके चलते लिंगायत का एक हिस्सा कांग्रेस से जा जुड़ा.

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